21 अप्रैल, 2023

## पुस्तक के विरोधिक विचारों का समाधान ##

NOTE : - 






1.        इस पुस्तक को पढ़ने के बाद पाठक-गण के मन बहुत से तर्क और प्रश्न उठ रहे होंगे । जहां तक हो सकता है, मैंने उनके मन को पढ़ने का प्रयास किया है और उनके शंकाओं समाधान भी किया है।
2.        इस पुस्तक में हरि-हाइड्रोजन को भगवान का रुप बताया गया है। भगवान के नर-रुप को छोड़कर अन्य रुप (विराट रुप/ हाइड्रोजन आदि रुप) की शक्ति को प्राप्त करने के लिये अर्जुन (पाठक / छात्र / सज्जन/ आदि) को भी दिव्य दॄष्टि की जरूरत है। इस गैस को सूंघने की अथवा कोई प्रयोग करने की कोशिश न करे अन्यथा जान जा सकती है। ऐसा करने पर लेखक, किसी भी प्रकार से जिम्मेवार नहीं होगा। भगवान को मुँह में निगलने की भूल दैत्य करते थे और मारे जाते थे। उनके इस रुप को सहन करने के लिये  दिव्य-कवच की जरुरत है ।
3.        बहुत प्रकार की राशियों के आंकिक मान लिखने से पहले लगभग शब्द का प्रयोग भूलवश नहीं हों पाया है। इसके लिये हमे खेद है।
4.        इस पुस्तक में दो प्रकार की किताबों क्रमशः आधुनिक-किताबों और प्राचीन-किताबों को एक साथ सम्मिलित किया गया है। आधुनिक समय में जितनी भी विषयों से आँकड़े लिये गये है, उन सभी के सम्मिलित रुप को साइंस अर्थात विज्ञान के अर्थ में ही प्रयुक्त किया गया है। भूगोल, अर्थशास्त्र, रसायन-विज्ञान, जीव-विज्ञान और भौतिक-विज्ञान आदि सभी का एक साथ आधुनिक प्रतिनिधित्व करने के लिये साइंस (विज्ञान) शब्द का प्रयोग किया गया है। इसके विपरीत जितने भी आँकड़े प्राचीन समय से लिये गये गये है, उन सभी आँकड़ों के लिये शास्त्र अथवा वेद शब्द का प्रयोग किया गया है। 4 वेद, 6 शास्त्र, 18 पुराण, 108 उपनिषद, रामायण, गीता, श्रीरामचरितमानस आदि के सम्मिलित रुप को प्रतिनिधित्व करने के लिये शास्त्र शब्द का प्रयोग किया गया है। शास्त्र और साइंस दोनों का उच्चारण एक ही अक्षर से हो रहा है इसलिये पुस्तक में सुंदरता लाने के लिये साइंस और शास्त्र शब्द का ही प्रयोग किया गया है ।
5.        हाइड्रोजन भी तो किसी दूसरे कण से बना है फिर यह सबको बनाने वाला ईश्वर कैसे हो सकता है? हरि-हाइड्रोजन यदि सर्वव्यापी है तो वो कार्बनडाइआक्साइड में क्यों नहीं है ? इस पुस्तक में मैंने ईश्वर के तत्व रुप की व्याख्या की है न कि नाभिकीय-कण रुप की । मैं अपने अगामी पुस्तक में ईश्वर के गोड-पार्टिकल के रुप की व्याख्या करूँगा । इस अगामी पुस्तक में सारे नाभिकीय कणों की भूमिका होगी । इस पुस्तक में उपरोक्त प्रश्नों का समाधान मिल जायेगा ।
6.        इस पुस्तक में ब्रह्मांड से संबधित डार्क-मैंटर और डार्क-एनर्जी वाले तथ्य को नजर-अंदाज किया गया है। मेरी अगामी पुस्तक में इसका भी समाधान किया गया है ।
अव्यक्त प्रधान तत्व से ही सब कुछ बना है , ऐसा पुराणों में लिखा गया है |  इस पुस्तक का आधार भगवान द्वारा व्यक्त-जगत है न की अव्यक्त |  
7.        वायुओं की संख्या के विषय में गीता, रामायण, श्रीरामचरितमानस, पुराण और वेद आदि के मतों में विभिन्न्ता है। यह विभिन्नता वायु के मानकीकरण और बहुरुपता की वजह से हो सकती है। बहुत स्थानों पर इसे 49 बताया गया है और बहुत जगहों पर 60X3=180 बताया गया है। ब्रह्मपुत्र मरीचि, मरुद-गण और वायुओं की संख्या को लेकर  विधिवत तरीके से आत्म-चिंतन जारी है जिसको आगामी पुस्तक में व्यक्त किया जायेगा  ।
8.       गैसों की संख्या को लेकर शास्त्र और साइंस दोनों ही कोई निश्चित तर्क नहीं दे रहे है। गीता और श्रीरामचरितमानस के अनुसार इनकी संख्या 49 होती है जबकि वेदों के के अनुसार यह संख्या 60x3=180 बतायी गयी है। वायु की उतप्ति आदिकाल में ही बतायी गयी है। मारुत गणों, मरीचि और वायुओं की संख्या को लेकर आत्म-चिंतन जारी है जो आगामी भविश्य में मेरी दूसरी पुस्तक में दिखेगा।
9.        बहुत से पाठक-गण आश्चर्य कर रहे होंगे कि एक ही चीज कण (हाइड्रोजन) और मानव (राम) कैसे हो सकती है ? क्या इसका वैज्ञानिक तर्क है ? मेंरे पास इसका सटीक वैज्ञानिक-तर्क है जो अगामी पुस्तक में दिखेगा । विशेष तर्क के लिये आप सादर आमंत्रित है ।

(10)   इस पुस्तक में लगभग सभी स्थानों पर हरि-हाइड्रोजन की प्रतिशत मात्रा को परमाणुओं की संख्या के अनुसार दिखाया गया है। यह प्रतिशत मान विज्ञान की किताबों, इंटरनेट की विभिन्न साइटो से लिया गया है। किताबों और विभिन्न साइटों की मानों अल्प रुप से विभिन्नता है। व्याकरण और समान्य भूल की मात्रा अति-अल्प रुप से पुस्तक में मौजुद हो सकती है। इसके लिये मैं लेखक एस. रामायण क्षमा चाहता हूँ । इसको पूर्ण रुप से शुद्ध अगले संस्करण में कर दिया जायेगा [सर्वाधिकार © लेखक ]  

(11)   बहुत से भक्त जन के मन में यह प्रश्न उठ रहा होगा कि हाइड्रोजन से पहले तो प्रोटान, क्वार्क, लेप्टान आदि कणों का प्रकटीकरण हो गया था फिर हाइड्रोजन ही आदि-कर्ता क्यों ? इस पुस्तक में ईश्वर के परमाणु रुप की व्याख्या की गयी है न कि नाभिकीय-कण रुप की । मेरी आगामी पुस्तक में इस प्रश्न का निवारण किया गया है और यह बताया गया है कि ईश्वर का आदिपुरुष-रुप (गोड-पार्टिकल) से अक्षर-पुरुष, क्षर-पुरुष, परमब्रह्मा, ब्रह्मा, गायत्री, महाविष्णु, विष्णु आदि का प्रकटीकरण हुआ।  गायत्री, दुर्गा, माया, क्ष्रर-पुरुष आदि में ही नाभिकीय- कणों का गुण विराजमान है। इस पुस्तक पर कार्य प्रगति पर है। जिस प्रकार से प्रोटियम, हाइड्रोजन-परमाणुहाइड्रोजन-गैस के अणु मूल रुप से एक होकर भी अलग है, वैसे भगवान और उनके रूपों में भी संबन्ध है।

नोट :  आक्सीजन और माया के समान-लक्षण को विधिवत तरीके से मेरी आगामी रचना में प्रकट किया जायेगा । इस पुस्तक को वजन आदि की दॄष्टि से हल्का बनाने की वजह से बहुत से गहन विचारों को प्रस्तुत नहीं किया गया है। 

(12)  हरि-हाइड्रोजन रुपी भगवान की शक्ति को सहन करने लिये दिव्य कवच की जरूरत है। पाठक-गण या अन्य जन हाइड्रोजन को सूंघने और आदि प्रयोग करने की कोशिश न करें अन्यथा जान जा सकती है। ऐसा करने पर लेखक किसी भी प्रकार से जिम्मेवार नहीं होगा। 

लेखक :  एस.  रामायण

 मो0- 6382317128

sramayan108@gmail.com

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