21 अप्रैल, 2023

31/51 लक्षण सँख्या = 31/51 [ हरि और हाइड्रोजन दोनों को जानने के लिए विज्ञान का ज्ञान आवश्यक है | ]

 *** 

 

अध्याय - 31

हरि और हाइड्रोजन के कुल 51 लक्षण मिलते है।

लक्षण-संख्या =31/51

[ यदि शास्त्र और साइंस दोनों सत्य है तो यह भी सत्य है कि ईश्वर के हरि-हाइड्रोजन  वाले रुप का साक्षात्कार करना बहुत ही कठिन है। गीता के अनुसार केवल तत्वदर्शी विद्वानों द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है।  ये तो जल, आग, वायु रूप में हर जगह व्याप्त (सर्वव्यापी) तो है फिर भी आंखो से दिखाई नहीं देते है। ये पाँचों ज्ञान-इंद्रीयों से परे है। ]

 

 


भगवान को प्राप्त करना बहुत ही कठिन कार्य है। भगवान तो सर्वव्यापी है फिर उनकी पहचान कर लेना कठिन है। भगवान श्री कृष्‍ण तो दुर्योधन, शकुनी, अर्जुन और भीम सबको दिखाई दिये थे फिर भी उनका वास्तविक पहचान तो केवल अर्जुन को ही हुआ। ईश्वर को प्राप्त करने की ईक्षा रखने वालों भक्तों के संदर्भ में गीता में आया है कि :-

ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानमिदं वक्ष्याम्यशेषतः ।
यज्ज्ञात्वा नेह भूयोऽन्यज्ज्ञातव्यमवशिष्यते ॥

मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये ।

यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्त्वतः ॥

मैं तुम्हारे लिए इस विज्ञान सहित तत्व ज्ञान को सम्पूर्णतया कहूँगा, जिसको जानकर संसार में फिर और कुछ भी जानने योग्य शेष नहीं रह जाता । हजारों मनुष्यों में कोई एक मेरी प्राप्ति के लिए यत्न करता है और उन यत्न करने वाले योगियों में भी कोई एक मेरे परायण होकर मुझको तत्व से अर्थात यथार्थ रूप से जानता है [ गीता 7.2 & 7.3 ]

गीता के सातवें अध्याय के दूसरे श्लोक में भगवान ने विज्ञान सहित ऐसे ज्ञान को बताने की बात कही है जिसको जानकर कुछ जानने योग्य शेष नहीं रह जाता है। यही कारण है कि मैंने ईश्वर को समझने के लिये विज्ञान की पुस्तकों का सहारा लिया है।  इसी अध्याय के तीसरे श्लोक के अनुसार हजारों मनुष्यों में कोई एक ही प्राणी ही ईश्वर को जानने का कोशिश करता है। उन यत्न करने वालों योगियों में कोई एक ही ईश्वर को तत्त्व से जान पाता है।

साइंस और शास्त्र दोनों ही के अनुसार ईश्वर के हरि-हाइड्रोजन रुप का साक्षात्कार अर्थात दर्शन करना बहुत ही कठिन है। यह हरि-हाइड्रोजन आंख रुपी ज्ञानइंद्रिय से परे है क्योंकि यह रंगहीन है।  यह गंधहीन है अर्थात नाक रुपी ज्ञानइंद्री से भी परे है। इनका घनत्व बहुत ही कम जिसकी वजह से यह कान, त्वचा और जीभ से भी परे है। गीता के 7 वे अध्याय के अनुसार विज्ञान का ज्ञान होना आवश्यक है।

ये हरि-हाइड्रोजन अपने गैसीय रुप (नीराकार रुप) में अदॄष्य और अन्तर्यामी   होते  है क्योंकि गैसों का कोई अकार नहीं होता है। इनके सकार रुप का दर्शन करने के लिये इनको द्रव-रुप और ठोस रुप में अवतरित होना पड़ेगा । हरि-हाइड्रोजन के सकार अर्थात ठोस (हिम) रुप को देखने के लिये अति न्यून ताप (-259 डिग्री-सेल्सियस) ताप की अवश्यकता होती जो कि इस लोक (पृथ्वी) पर संभव नहीं है। माइनस 10 सेल्सियस के ताप वाली बर्फ को छुते ही अंग जम जाता है। दुनियाँ के सारे कण माइनस 100 के अंदर जम जाते है लेकिन हरि-हाइड्रोजन का दर्शन करने के लिये सबसे कम ताप (-259 डिग्रीC) की आवश्यकता होती है। इतना कम ताप वाली जगह का होना शायद ही संभव है  दूसरे लोक विष्णु लोक (बृहस्पति-ग्रह/बैकुण्ठ) मे इनका दर्शन हो सकता है लेकिन वहां पर जाना अतिदुर्लभ है। पृथ्वी पर कुछ विशेष वैज्ञानिक रुपी महर्षि ही अपनी प्रयोगशाला (यज्ञशाला) मे दर्शन कर सकते है। यह भूरे रंग (मेघवर्णम्) के रुप दिखाई देती है।  


**************  जय श्री राम  *****************

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

जय श्री राम 🙏