10 अप्रैल, 2023

16/51 लक्षण संख्या-16/51 [हरि-हाइड्रोजन के अंदर सारी सृष्टियाँ व्याप्त है और सारी सृष्टियों के अंदर, ईश्वर (हरि-हाइड्रोजन) व्याप्त है। ]

 

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अध्याय - 16

हरि और हाइड्रोजन के कुल 51 लक्षण मिलते है।

लक्षण-संख्या =16/51

[ यदि शास्त्र और साइंस दोनों सत्य है तो यह भी सत्य है कि ईश्वर (हरि-हाइड्रोजन) के अंदर सारी सृष्टियाँ व्याप्त है और सारी सृष्टियों के अंदर, ईश्वर (हरि-हाइड्रोजन) व्याप्त है। ]

 

 


प्रभु की लीला अपरमपार है। गीता में ईश्वर (हरि-हाइड्रोजन)  ने स्वयं कहा है कि मुझमें व्याप्त सृष्टियाँ, मैं सृष्टियों में व्याप्त हूँ । यह बात रामानंद सागर द्वारा निर्देशित कृष्णा नामक धारावाहिक में रविंद्र-जैन जी के माध्यम से गायी हुई गीत के माध्यम से भी बतायी गयी है। यहाँ पर दो विरोधी बातें एक साथ की गयी है जिसको विज्ञान की कसौटी पर प्रस्तुत करना कठिन है। जिस घर में कोई इंसान रहता है, वह घर इंसान के अंदर कैसे घूस सकता है ? कार के अंदर कोई व्यक्ति बैठा है फिर यह कैसे हो सकता है कि वह कार उस व्यक्ति के अंदर समा जाय ? एक व्यक्ति ज्यादा से ज्यादा एक बार में 5kg खाना खा भी सकता है लेकिन 5 किंटल की कार उसके अंदर भला कैसे समा सकती है ? क्या विज्ञान के अनुसार भी ऐसी दो विरोधी बाते वास्तव में संभव है ? इस विषय में कबीर-दास जी ने कहा है कि

जल में कुम्भ, कुम्भ में जल है, बाहर भीतर पानी ।

 फूटा कुम्भ जल जलहि समाना, यह तथ कहौ ज्ञानी ।

 

उपरोक्त दोहे में कुम्भ को भूत (जगत/प्राणी) माना गया है और जल को ईश्वर माना गया है। इसी उपमा द्वारा दो विरोधी बातों को समझाया गया है।

माना कि किसी जल भरे घड़े को नदी डुबो दिया गया है। अब इस स्थिति में दोनों विरोधी बाते एक साथ बोली जा सकती है। हम कह सकते है कि घड़े के अंदर जल है और जल के अंदर घड़ा है। ठीक इसी प्रकार हरि-हाइड्रोजन ने इस जगत की रचना की है। हरि-हाइड्रोजन जगत के अंदर व्याप्त है और सारा जगत हरि-हाइड्रोजन के अंदर व्याप्त है।  इस संदर्भ में गीता में आया है कि :-

यथाकाशस्थितो नित्यंवायुः सर्वत्रगो महान् ।
तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय ॥  

जैसे आकाश से उत्पन्न सर्वत्र विचरने वाला महान वायु (हाइड्रोजन) सदा आकाश में ही स्थित है, वैसे ही मेंरे संकल्प (हाइड्रोजन) द्वारा उत्पन्न होने से संपूर्ण भूत मुझ में स्थित हैं, ऐसा जान।  [ गीता 9.6 ]

आज़ के आधुनिक विज्ञान से बहुत पहले ही गीता में यह बता दिया गया था कि धरातल से सबसे अधिक ऊँचाई पर स्थित आकाश (640 किमी0 से बहुत आगे तक तक ) में कोई महान वायु (हाइड्रोजन) रहती है। सबसे हल्की होने के कारण हरि-हाइड्रोजन पृथ्वी के अंतिम क्षोर (महीअर्श) पर विराजमान रहते है। इस प्रकार हम सभी प्राणीयों सहित सम्पूर्ण पृथ्वी, बाह्यमंडल (हरि-हाइड्रोजन की सत्ता) के अंदर व्याप्त है और इसके विपरीत हरि-हाइड्रोजन, हम सभी प्राणियों के अंदर (लगभग 90% तक /गुण स0 04/51) विराजमान है ।

कोशिका, उतक, अंग, तंत्र, शरीर, प्राणी, जंतु, वनस्पति, बर्फ, सागर सहित संपूर्ण पृथ्वी के अंदर,  हरि-हाइड्रोजन विराजमान है और ठीक इसके विपरित यह पृथ्वी जीव सहित, उस महान अकाशीय वायु (हाइड्रोजन के अंदर व्याप्त है। बाह्यमंडल (हरि-हाइड्रोजन) के अंदर यह संपूर्ण जगत (पृथ्वी) विराजमान है। यही कारण है कि ईश्वर (हरि-हाइड्रोजन)  कहते है कि  मुझमें व्याप्त सृष्टियाँ, मैं सृष्टियों में व्याप्त हूँ

ब्रह्मांड में पाये जाने वाले अधिकांश पिंडों के अंदर हरि-हाइड्रोजन व्याप्त है और वो सभी पिंड भी हरि-हाइड्रोजन के बाह्यमंडल के अंदर व्याप्त है। हल्की होने की वजह् से  हरि-हाइड्रोजन सभी पिंडों ( ग्रहों और तारों आदि ) के बाह्यमंडल में ही विराजमान रहते है। यहाँ तक कि सूर्य के अंदर भी हरि-हाइड्रोजन ही विराजमान है और सूर्य भी हरि-हाइड्रोजन के अंदर विराजमान है।  यही कारण है कि ईश्वर (हरि-हाइड्रोजन)  कहते है कि  मुझमें व्याप्त सृष्टियाँ, मैं सृष्टियों में व्याप्त हूँ ।


**************  जय श्री राम  *****************

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