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अध्याय - 12हरि
और हाइड्रोजन के कुल 51 लक्षण मिलते है। लक्षण-संख्या =12/51 [ यदि वेद और विज्ञान दोनों सत्य है तो यह भी सत्य है
कि ईश्वर (हरि-हाइड्रोजन) ही पंचभूत के रचयिता है। यहाँ पर आकाश (गगन) नामक भूत पदार्थ को दिखाया गया है।
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गगन शब्द को हिंदी में आकाश कहा जाता है। भूगोल के
अनुसार पृथ्वी से अधिकतम ऊँचाई पर स्थित क्षेत्र को आकाश ही तो कहा जाता है। इस आकाश
नामक क्षेत्र का निर्माण भी हरि-हाइड्रोजन के द्वारा ही हुई है। हमारी
पृथ्वी चारों ओर से पांच प्रकार की वायुमंडलीय परतों से घिरी हुई है। इन परतों के
नाम क्रमशः क्षोभमंडल, समताप-मंडल, ओजोनमंडल, आयनमंडल और
बाह्यमंडल है। क्षोभमंडल की धरातल से ऊँचाई 18 किमी0, समताप-मंडल की 18 से 32 किमी0, ओजोन-मंडल की ऊँचाई 32 से 60 किमी0, आयनमंडल की सीमा 60 से 640 किमी0 और बाह्यमंडल की सीमा 640 किमी0 से बहुत आगे तक होती है। हरि-हाइड्रोजन
सबसे हल्के (अभिमान अर्थात द्रव्यमान रहित) होते है और
इसके साथ ही समान्य ताप और दाब पर इनका वर्गमाध्यमूलवेग (vrms) सबसे अधिक होता है। उस ऊँचाई पर
पृथ्वी के गुरुत्वीय-आकर्षण का मान होने लगता है, इस प्रकार
हरि-हाइड्रोजन वहां से स्वतंत्र गति करने में सक्षम हो सकते
है।
(इन परतों का नाम पुरानी पुस्तक
के अनुसार दिये गये है। आजकल नई किताबों में मध्यमंडल का जिक्र भी मिलता है। )
क्षोभमंडल (माया नगरी) में ही
आक्सीजन (लगभग 21%), और नाइट्रोजन
(78%) रुपी माया का प्रभाव अधिक रहता है। इस माया रुपी संसार में
ही गर्मी-सर्दी, सुख-दुख और मौसम का
बदलाव होता रहता है और इसके ठीक ऊपर वाली समताप-मंडल में कोई
भी मौसमी घटना नहीं होती है इसलिये इसमें वायुयान उडाये जाते है। ओजोनमंडल पराबैग्नी
किरणों से रक्षा करती है। आयनमंडल का प्रयोग रेडियो-वेभ को
परावर्तित करने में किया जाता है ।
सबसे ऊँचे स्थान पर स्थित परत का नाम बाह्यमंडल (महिअर्श) है। इसकी सीमा निर्धारित नहीं है। हरि-हाइड्रोजन
(मरीचि-वायु) गैस हल्की
होने की वजह से सबसे बाह्यपरत में संत-हीलियम के साथ विराजमान रहते है। इसके
भी तीन भाग होते है। सबसे हल्का तत्व हरि-हाइड्रोजन है इसलिये यह सबसे अधिक
ऊँचे आकाश नामक भूत-पदार्थ की रचना करते है। यहाँ से ये
पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से मुक्त होकर अल्प मात्रा में अंतरिक्ष में भी विचरण करते है। इस प्रकार 4 + 3= 7 के अनुसार सातवें आसमान पर हरि-हाइड्रोजन ही
विराजमान है। यहाँ पर हरि-हाइड्रोजन
का शुद्ध रुप (पूर्ण-रुप) विराजमान
रहता है। जिस प्रकार जल के विशाल संग्रह को समुँदर कहा गया है वैसे ही हरि-हाइड्रोजन
के विशाल संग्रह को आकाश कहा गया है। श्रीविष्णु-स्तुति में
ईश्वर (हरि-हाइड्रोजन) को गगन-सदृश्यम
कहा गया है। आगे आया है कि :-
शान्ताकारं
भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं ।
विश्वाधारं गगनसदृशं में मेघवर्ण शुभाङ्गम् ।
लक्ष्मीकान्तं
कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे
विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥
परमात्मा का हरि-हाइड्रोजन वाला रुप ही विश्व का आधार है,जो विष्णु है, वही विश्व का अणु है। गगन (बाह्यमंडल) के समान है और इसको द्रव-अवस्था में करके देखने पर भूरे (मेघ-रंग) के समान दिखाए देते है और लक्ष्मी (माया-आक्सीजन) के साथ जल रुप में सदा ही विराजमान रहते है। निर्वात में हरि-हाइड्रोजन का आदिरुप (हिग्स-बोसोन) ईथर के रूप में पाया जाता है। आदि-पुरुष से क्वार्क, लेप्टान, प्रोटान, न्युट्रान आदि बनने की बात को मेरी दूसरी पुस्तक में दिखाया गया है।
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श्री राम *****************
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