09 अप्रैल, 2023

10/51 लक्षण संख्या-10/51 [ हरि-हाइड्रोजन और वायु नामक पंचभूत ]

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अध्याय - 10

हरि और हाइड्रोजन के कुल 51 लक्षण मिलते है।

लक्षण-संख्या =10/51

[ यदि शास्त्र और साइंस दोनों सत्य है तो यह भी सत्य है कि भगवान ( हरि-हाइड्रोजन ) ही पंचभूत के रचयिता है। यहाँ पर वायु नामक भूत पदार्थ को दिखाया गया है। ]

 


वायु बहुत प्रकार के गैसों का समांगी-मिश्रण है। प्राचीन-ग्रंथों में गैस शब्द का अभाव है इसलिये वायु के ही अलग-अलग प्रकार बता दिया गया है। वायु एक ऐसी पदार्थ है जो दिखाई नहीं देती है फिर भी इसके विराजमान होने का प्रबल साक्ष्य होता है। यह अदृश्य पदार्थ एक प्रकार का नहीं होता है बल्कि यह अलग-अलग प्रकार की वायुओं से मिलकर बना होता है। हेनेरीकेवेंडिस ने हाइड्रोजन और प्रीसट्ले ने आक्सीजन का पता लगाया तब जाके यह साबित हुआ कि वायु भी अलग-अलग गैस से मिलकर बनी होती है। विज्ञान को इस बात का ज्ञान आधुनिक समय में हुआ जबकि हमारे प्राचीन-ग्रंथो को यह ज्ञान बहुत पहले ही हो चुका था। सुंदरकांड और गीता में 49 प्रकार के वायु पाये जाने की बात की गयी है।  इनमें से कुछ गैसें एकल परमाणु, कुछ द्वि-परमाणुक और बहुपरमाणुक आदि होती है। हीलियम, आर्गन आदि एकल-परमाणुक गैस के उदाहरण है। हाइड्रोजन और आक्सीजन आदि द्वि-परमाणुक गैस के उदाहरण है। अमोनिया, कार्बनडाइआक्साइड आदि त्रि-परमाणुक गैस है।

आँखों से देखने पर केवल आयतन का अनुमान लगाया जा सकता है इसलिये वायु नामक भूत-पदार्थ की व्याख्या भी आयतन के अनुसार की गयी है। इस ब्रह्मांड का अधिकांश भाग, हरि-हाइड्रोजन नामक वायु और शेष उनकी माया द्वारा रचा गया है।

ईश्वर का संबध संपूर्ण ब्रह्मांड से है अतः ईश्वर द्वारा रचित वायु नामक भूत-पदार्थ की विवेचना भी ब्रह्मांड स्तर पर की जानी चाहिये न कि पृथ्वी स्तर पर।

 माया द्वारा भ्रमित समान्य लोगों को पृथ्वी की निचली परत (क्षोभमंडल) में आक्सीजन और नाइट्रोजन रुपी माया का (लगभग 78+21=99%) प्रभाव तो दिखाई देता है लेकिन पृथ्वी की संसारिक-माया अर्थात आक्सीजन और नाइट्रोजन की वजह से बाह्यमंडल में और संपूर्ण-ब्रह्मांड में व्याप्त, हरि-हाइड्रोजन की अपार सत्ता नहीं दिख पाती है। इस संसारिक-माया नगरी में हरि-हाइड्रोजन का प्रकट होना कठिन है। पृथ्वी के धरातल से 18 किमी0 ऊँचाई वाली क्षोभमंडल में ही आक्सीजन और नाइट्रोजन रुपी माया का प्रभाव ज्यादा रहता है। इस माया की वजह से बाह्यमंडल (640 किमी0 से बहुत आगे तक) में स्थित हरि-हाइड्रोजन के पूर्णरुप (शुद्ध रुप) का ज्ञान नहीं हो पाता है। महिअर्श अर्थात पृथ्वी के अंतिम क्षोर पर विराजमान रहने वाले वायु का नाम हरि-हाइड्रोजन ही है। हरि-हाइड्रोजन नामक वायु ने इस संसारिक-माया (नाइट्रोजन और आक्सीजन) से हजारों गुना अधिक स्थान बाह्यमंडल में घेर रखा है ।

जिनकी नजर में पृथ्वी का राज्य ही सब कुछ है और इससे बड़ा कुछ भी नहीं है, ऐसे लोग ही पृथ्वी के सतह से चिपकी हुई आक्सीजन (21%लगभग) और नाइट्रोजन (78% लगभग ) के प्रभाव में आ जाते है। इस माया के कारण बाह्यमंडल में 640 किमी0 बहुत आगे तक की सीमा में फैली हुई, हरि-हाइड्रोजन की अपार- सत्ता दिखाई नहीं देती है।  श्रीविष्णु-स्तुति में आया है कि

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं ।

विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णम शुभाङ्गम्  ।।

वह भगवान विष्णु अर्थात विश्व में समाया हुआ अणु (हरि-हाइड्रोजन) ही जो गगन के समान है। उपरोक्त पंक्तियों में ईश्वर को गगन के समान बताया गया है। प्राचीनकाल हो या वर्तमानकाल, गगन अर्थात अकाश तो वही रहता है। भूगोल के अनुसार पृथ्वी की सबसे उपरी-परत को गगन कहा जा सकता है। समान्य आँखों से देखने पर यह गगन पारदर्शी प्रतीत होता है लेकिन विज्ञान की आँखों से देखने पर वह गगन कुछ और नहीं बल्कि हरि-हाइड्रोजन का ही रुप है। यह गैस सबसे हल्की होने के कारण सबसे ऊंचे गगन (गगनसदृशं)  में पायी जाती है ।

सौरमंडल में पृथ्वी से बड़े 4 ग्रहों को गैसीय ग्रह कहा जाता है। ये ग्रह क्रमशः बृहस्पति (जूपिटर), शनि (Saturn), अरुण (युरेनस) और वरुण (Neptune) है। बृहस्पति (जूपिटर) का अकार शेष सभी ग्रहों के योग का 2.5 ग़ुना है। बृहस्पति (जूपिटर) के लगभग 89 % भाग की रचना हरि-हाइड्रोजन नामक वायु से हुई है। शनि के लगभग 96.3%, अरुण के लगभग 83.3% और वरुण के 80% भाग की रचना हरि-हाइड्रोजन से हुई है। सूर्य और तारों के लगभग संपूर्ण भाग (परमाणुओं की संख्या के अनुसार 91.2% ) हरि-हाइड्रोजन द्वारा और शेष भाग संत हिलीयम (8.7%) द्वारा रचा गया है। मंदाकिनी का 98% भाग ऐसे तारों द्वारा रचा गया है। मंदाकिनी में शेष 2% में हरि-हाइड्रोजन और मेथेन गैस ही व्याप्त है। यह वायु ही ब्रह्मांड और सौर-पवन के रुप  अंतरिक्ष में विचरण करती रहती है।  हरि-हाइड्रोजन का वेग अन्य परमाणुओं की तुलना में सबसे अधिक होता है जिसके कारण ये पृथ्वी के आकर्षण से मुक्त होकर अल्प मात्रा में ब्रह्मान्ड में भी गति करते रहते है।

यदि बाह्यमंडल, सौरमंडल और चार गैसीय ग्रहों पर विचार किया जाय तो पृथ्वी के माया नगरी में व्याप्त आक्सीजन और नाइट्रोजन की मात्रा बहुत ही तुक्ष (0.1 % से भी कम) होगी। भगवान की महिमा का बखान ब्रह्मांड स्तर पर होगी न कि पृथ्वी के स्तर पर। पृथ्वी का संसार माया का संसार है और यहां पर माया का प्रभाव प्रबल है।

 

नोट :- उपरोक्त सभी आँकड़े लगभग में प्रस्तुत किये गये है ।

 

 

 

 

 

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