05 अप्रैल, 2023

06/51 लक्षण संख्या 06/51 [हरि-हाइड्रोजन का शिव रुप ]

  

अध्याय - 6

हरि और हाइड्रोजन के कुल 51 लक्षण मिलते है।

लक्षण-संख्या =06/51

यदि वेद और विज्ञान दोनों सत्य है तो यह भी सत्य है कि भगवान (हरि-हाइड्रोजनका ट्राइटेरियम-शिव (Tri, त्रिनेत्रधारीत्रिशूलवाला रुप ही जगत-संहारक-लीला को करता है। ]


प्रेम से बोलिये, देवों के देव महादेव की जय। ईश्वर (हरि-हाइड्रोजन) के तीन रुप में से ट्राइटेरियम-शिव (1H3) वाला रुप ही जगत-संहार करने की क्षमता रखता है। ट्राइटेरियम-शिव (1H3) की वैज्ञानिक लीलाओं  को निम्नवत दिखाया गया है।  

(a)     परमाणु-हथियार (हाइड्रोजन-बम) वास्तव में  जगत का संहार करने की क्षमता रखते है। इस संहारक-लीला का आरम्भ ट्राइटेरियम-शिव ही करते है क्योंकि परमाणु हथियारों में इनका योगदान सबसे अहम होता है। परमाणु-हथियारों के संहारक लीला में न्युट्रान-इनिसिएटर और बूसट्रर का प्रयोग किया जाता है। इनमें यह त्रिदेव ही विराजमान होकर इस क्रिया का प्रारंभ और नियंत्रित दोनों करते है। त्रिनेत्रधारी और त्रिशूल वाले ट्राइटेरियम-शिव से निकलने वाला बीटा-ज्योति (बीटा-रे) का प्रयोग प्रलयकारी परमाणु-हथियारों में किया जाता है।

(b)     परमाणु-बम समान्य डायनामाइट और RDX निर्मित आदि रसायनिक बमों से हजारों गुना अधिक शक्तिशाली होता है लेकिन परमाणु-बम भी से हजार गुना अधिक शक्तिशाली हाइड्रोजन-बम होता है। इन बमों के प्रयोग से धरती डोल जाती है। इस हाइड्रोजन-बम की संहारक लीला का प्रारम्भ और नियंत्रण के मूल-कारक त्रिनेत्र-धारी ट्राइटेरियम-शिव ही है। यही कारण है कि ट्राइटेरियम-शिव को प्रलयकारी कहा जाता है।  **

(c)     ट्राइटेरियम-शिव के अवतार तुलना में कम हुए है और यही कारण है कि ये बहुत ही कम पाये जाते है। इनके 12 अवतारों को ज्योतिर्लिंग-अवतार भी कहा जाता है। ज्योति शब्द को अंग्रे़जी में रे (Ray/किरण) कहते हैं ।  ट्राईटेरियम-शिव से बीटा नामक ज्योति (किरण) निकलती है, इसलिये इन्हे ज्योतिर्लिंग (ज्योति-स्वरुप) कहते है। बारह ज्योतिर्लिंग-स्वरुप वाले ट्राइटेरियम-शिव की अर्ध-आयु (कुल आयु अनंत) 12.4 वर्ष होती है। रेडियोएक्टिव-ज्योति निकलने की बात, मेंरे (लेखक:  एस.  रामायण के) अतिरिक्त भारत के पंडित-गजानन जी भी बता रहे है।  **

(d)     बीटा-ज्योति (बीटा-किरण) दर्शन के लिये तो नुकशानदायक नहीं होती है लेकिन फिर भी यदि खाद्य-पदार्थों में मिल जाय तो पेट में जाकर नुकसानदायक हो सकती है। यही कारण है कि ट्राइटेरियम-शिव पर अर्पित प्रसाद को नहीं खाया जाता है। इस प्रकार यह साबित होता है कि शास्त्र और साइंस दोनों ही शिव-लिंग पर अर्पित प्रसाद को न खाने का सलाह देतेहै। **

(e)     अन्य देवताओं को जल से स्नान कराकर, जलपान कराकर भोग लगा दिया जाता है जबकि शिव पर निरंतर ही जल चढ़ाया जाता है क्योंकि इनके जयोति-लिंग से निरंतर बीटा-किरण (ज्योति) निकलती रहती है। ट्राइटेरियम-शिव से निकलने वाली बीटा-ज्योति को शांत करने के लिये शिव-लिंग पर जल को लगातार चढाया जाता है। विज्ञान के अनुसार जल इन किरणों को अवशोषित कर लेता है। यह ज्योति, ताप और दाब रुपी माया के प्रभाव से मुक्त होती और निरंतर निकलती रहती है इसलिये यह जल भी निरंतर ही चढ़ाया जाता है।

  

 

**************  जय श्री राम  *****************


1 टिप्पणी:

जय श्री राम 🙏