04 अप्रैल, 2023

01/51 लक्षण संख्या - 01/51 [ हरि और हाइड्रोजन ही जगत के आदि-कर्ता के रुप में ]

 

 

अध्याय - 1

हरि और हाइड्रोजन के कुल 51 लक्षण मिलते है।

लक्षण-संख्या =01/51

 [ यदि शास्त्र और साइंस दोनों सत्य है तो यह भी सत्य है कि भगवान का हरि-हाइड्रोजन वाला रुप ही ब्रह्मांड (जगत) के आदि-अंत दोनों है। इस अध्याय में केवल आदि-कर्ता गुणों को वैज्ञानिक तरीके से दिखाया गया हैं जबकि अगले अध्याय में अंत-कर्ता गुणों को दिखाया गया है। ]





दुनियाँ
के सभी पवित्र ग्रंथो सहित श्रीमदभागवतगीता और श्रीरामचरितमानस के अनुसार, ईश्वर (राम / कृष्‍ण / नारायण) को ही इस सृष्टि (ब्रह्मांड / जगत/ संसार आदि) का आदिकर्ता माना जाता है। इस विषय में श्रीरामचरितमानस और गीता में आया है कि :-

प्रभु जे मुनिपरमारथवादी । कहहिं राम कहुँ ब्रह्म अनादी
शेष सारदा वेद पुराना । सकल करहिं रघुपति गुनगाना

जो परमार्थतत्व (ब्रह्म) के ज्ञाता मुनि हैं, वे श्री रामजी को अनादि ब्रह्म कहते हैं और शेष, सरस्वती, वेद और पुराण सभी श्री रघुनाथजी का गुण गाते हैं।    [ 001070-3 ]

सर्गाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन ।
अध्यात्मविद्या विद्यानां वादः प्रवदतामहम् ॥

मैं (भगवान) ही सृष्टियों का आदि और अंत तथा मध्य भी मैं ही हूँ।                 [ गीता/ 010 श्लोक 32 ]

राम ही जगत का अनादि-ब्रह्मा है। वह ही इस जगत के मूलकारक है। वह मूल ईश्वर है। उस ईश्वर के अनेकों रुप है। भगवान नर लीला करने के लिये मानव शरीर रुप लेकर अयोध्या में अवतरित हुए थे। मेंरे प्रभु राम के अनेकों रुप है। सभी रूपों की महिमाये और विशेषताएँ अलग-अलग है। मेंरे प्रभु राम ही नारायण, कृष्‍ण, नरसिंह और वराह आदि अवतारों में अवतरित हुए थे। भगवान का राम रुप तो दशरथ और कौशल्या के बाद आया और ईश्वर का कृष्‍ण-रुप तो यशोदा और नंद के बाद प्रकट हुआ तो फिर ऐसा क्यों  कहा जाता है कि ईश्वर (राम/ कृष्‍ण) ही आदि (प्रारम्भ-कर्ता) है ? राम से पहले तो राजा दशरथ, मंत्री आर्य-सुमंत आदि का धरती पर अवतरण हो चुका था फिर श्रीरामचरितमानस और गीता से ली गयी उपरोक्त पंक्तियों में ऐसा क्यों कहा जाता है कि ईश्वर (राम) की अनादि (प्रारम्भ-कर्ता) है ? नंद और यशोदा के बाद जन्म लेने वाले भगवान-श्रीकृष्‍ण ने ही गीता में स्वयं को जगत का आदि-अंत क्यों बताये है ? यह कैसे हो सकता है कि पिता जो कि इस पृथ्वी पर पहले अवतरित हुआ, उसका ही पुत्र इस जगत का आदि-कर्ता हो जाये और पिता एक समान्य मानव ही रहे ?  सुदामा, गोपियां आदि सबका जन्म भी तो कृष्‍ण के साथ ही हुआ होगा फिर उन सभी को आदि-कर्ता क्यों नहीं माना जाता है ? इन सभी प्रश्नों का निवारण निम्न प्रकार से किया गया है।

भगवान ने नर-लीला करने के लिये दशरथ-नंदन का रुप लिया था लेकिन जो रुप आदि-कर्ता है उस रुप का नाम नारायन और विष्णु आदि है। वह भगवान साकार और निराकार दोनों रूपों में है। भगवान के साकार निराकार दोनों रूपों में होने की बात श्रीरामचरितमानस और गीता दोनों में की गयी है। भगवान का प्राकृतिक रुप सूक्ष्म  कणों जैसे हाइड्रोजन, प्रकाश, आत्मा और गोड-पार्टिकल अर्थात हिग्स-बोसोन आदि का है।

विष्णु और नारायन शब्द : -

जो विश्व का अणु  है, वही विष्णु है। विष शब्द का मतलब भी सर्वत्र व्याप्त होने से है। जो अणु (हाइड्रोजन) विश्व में व्याप्त है वही विष्णु है।  जो नार का अयन है, वही नारायन है। भगवान की उत्पति नार अर्थात जल से हुई इसलिये भगवान को नारायन भी कहा जाता है।

 विज्ञान के अनुसार इस विश्व में सबसे अधिक कण हाइड्रोजन परमाणु के ही है और यह हाइड्रोजन ही नार अर्थात जल (H2Oका एक अयन है अर्थात नारायन है।  इस प्रकार हाइड्रोजन विश्व का अणु भी है और नार का अयन भी है। नारायन की तरह हाइड्रोजन की उत्पति भी जल से ही होती है। आक्सीजन माया है और हाइड्रोजन मायापति है। नारायन शब्द के भी आधे भाग का अर्थ जल होता है और हाइड्रोजन शब्द के भी आधे भाग का अर्थ जल ही होता है। पुस्तक के आगे अध्यायों में इसकी विधिवत व्याख्या की गयी है। यह हाइड्रोजन भगवान का प्राकृतिक रुप है, लेकिन इसी विश्व अणु-रुप को मिलाकर ब्रह्मांड की एक आकृति बनायी जाती है जो उनके साकार रुप (शयन किये हुए विष्णु भगवान के हाँथ/ सुदर्शन चक्र) का दर्शन कराती है। इस प्रकार हाइड्रोजन ही नार अर्थात जल के अयन अर्थात नारायन है। इस प्रकार हाइड्रोजन ही विष्णु अर्थात विश्व के अणु है। हाइड्रोजन की सत्ता जीव-शरीर से लेकर ग्रह और तारों आदि तक सबसे अधिक मात्रा में व्याप्त है।

 मैं भगवान के साकार और निराकार दोनो रूपों को सत्य मानता हूँ । एक चीज कण और शरीर दोनों रूपों में कैसे हो सकती है ? इस बात का वैज्ञानिक निकारण, लेखक एस रामायण की अगली पुस्तक के रुप में किया जायेगा।   

आदिकर्ता के रुप में विज्ञान का विचार :

विज्ञान के अंदर आने वाले बिग-बैंग के सिद्धांत के अनुसार, आज से लगभग 13.7 अरब वर्ष पूर्व महाविस्फोट के फलस्वरुप, अत्यंत कम समय में ब्रह्मांड (सृष्टि/जगत) की रचना हुई थी। यह विस्फोट इतना भयानक था कि ब्रह्मांड 1.34 सेकेंड में 1030 गुना फैल चुका था। इस सिद्धांत के अनुसार प्रारंभिक चरण में अति सूक्ष्म कणों का अवतरण हुआ था और उसके लगभग 10 अरब वर्ष बाद जीव-उत्पति की घटना हुई। बिग-बैंग के सिद्धांत और ब्रह्मापुराण के अनुसार 118 प्रकार के तत्वों में सबसे पहले प्रकट होने वाला परम-तत्व हरि-हाइड्रोजन ही है। हरि-हाइड्रोजन के इस रुप का अवतरण लगभग 1.43 सेकेंड के अंदर हो गया था। आप गूगल पर सर्च करके इसका पता अवश्य लगा सकते हैं।  ठीक उसी समय  हरि-हाइड्रोजन के तीन रुप क्रमशः ब्रह्मा (प्रोटियम-ब्रह्मा), विष्णु (ड्युटेरियम-विष्णु) और शिव (ट्राइटेरियम-शिव) भी प्रकट हुए थे।

ब्रह्मांड-पुराण सहित श्रीमदभागवत-पुराण के दूसरे स्कंध में साफ-साफ बताया गया है कि आदिकाल में परमात्मा अतिसूक्ष्म रुप में ही प्रकट हुए थे। इस जगत में अति-सूक्ष्म चीजों को कण ही तो कहा जाता है। सबसे पहले आदिपुरुष (गोड-पार्टीकल/हिग्स-बोसोन) प्रकट हुए और उनसे ही अन्य रूपों का अवतरण हुआ । इससे ही कवार्क, लेप्टान, प्रोटान, न्युट्रान आदि नाभिकीय- कणों की रचना हुईं है।

गीता और विष्णुसहस्रनाम के अनुसार मरीचि एक प्रकार की वायु होती है जो सभी तत्वों में सबसे सूक्ष्म (31pm) होती है। गीता में मरीचि नामक वायु को तेजवान बताया गया है। हरि-हाइड्रोजन नामक वायु का वेग और ताप दोनों ही बहुत अधिक होता है।  हरि-हाइड्रोजन का यह सूक्ष्म रुप ही सूर्य और तारों में विराजमान होकर संपूर्ण जगत को तपा रहा है। इस प्रकार साबित होता है कि भगवान अपने सूक्ष्म-रूपों ( कण, परमाणु, और हाइड्रोजन आदि) से ही आदिकाल में सृष्टि (ब्रह्मांड/जगत) की रचना की थी।

भगवान राम के दशरथ-नंदन के रुप में अवतार लेने से पहले दो प्रकार के राम का वर्णन मिलता है। एक राम को वाल्मीकि जी भी जपते थे। दूसरे राम के रुप में ॠषि जमदग्नि और रेणुका के पुत्र भी थे। ॠषि जमदग्नि के इस पुत्र को बहुत दिन तक राम नाम से ही संबोधित किया गया लेकिन बाद में आगे चलकर इन्हे परशा धारण कर लेने के कारण परशुराम की प्रबल उपाधि प्रदान की गयी। भगवान के ये तीनों रुप एक ही थे। इन तीनों राम के रुप भले ही अलग-अलग है लेकिन मूल तो एक ही है। माता सती ने क्षत्रिय-अवतार रामजी की परीक्षा लेकर यह प्रमाणित कर दिया था कि सीतापति राम ही समस्त जगत को चेतना प्रदान करने वाले, सर्वशक्तिशाली और सर्वव्यापी है। भगवान के यादव-अवतार श्रीकॄष्ण की परीक्षा स्वयम्‌ ब्रह्मा जी ने लिया था और फिर इस परीक्षा में यह साबित हुआ कि वही तीनों लोकों को चलाने वाले है।

मैं लेखक एस. रामायण एक मूर्ति पूजक भक्त हूँ । मेरा मानना है कि भगवान कौशल्यानंदन एक है और उनके ही अनेक स्वरुप है। उनके  ही मूर्ति पूजन से मुझे उनकी इस वैज्ञानिक लीला का ज्ञान हो पाया है। मेरा मानना है कि ठाकुरजी ( श्रीरामजानकी मंदिर, सिंगार-बाबा ) के हजारों दिव्य शक्तियों में से एक छोटी सी शक्ति का नाम विज्ञान है।


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1 टिप्पणी:

  1. अद्भुत मैं इसे पढ़ के आश्चर्य चकित हूँ बहोत ही गूढ ज्ञान को आप रसायन भौतिक और गणित से समझा रहें हैं आपको कोटि कोटि नमन

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जय श्री राम 🙏